Sunday 30 June 2013

सम्मोहन वशीकरण की माया



       सम्मोहन वशीकरण यंत्रम 


          सम्मोहन वशीकरण का तात्पर्य यह है कि, इसका विधि पूर्वक प्रयोग कर किसी भी व्यक्ति के चंचल  मन को अपने कंट्रोल में कर लेना और उसे अपने आदेशों पर संचालित करना। प्राचीन शास्त्र ग्रन्थों में इसके लिए दर्जनों उपाय सार्वजानिक किए गए हैं। इसका पूरा पूरा लाभ जन-समाज ने उठाया भी और लगातार उठाया जा रहा है। 
          
        आज मैं इसी विषय पर अति सहज रूप से एक शक्तिशाली प्रयोग बता रहा हूँ । इसका विधिवत प्रयोग कर कोई भी पुरुष स्त्री अपनी पोजेटिव कामना के लिए शत-प्रतिशत लाभ उठा सकते हैं। अतः इस प्रयोग के लिए कहीं से ग्रहण काल में सिद्ध किया शुद्ध वशीकरण यन्त्र और शुद्ध स्फटिक माला की व्यवस्था कर लें। 
          
         अब शुक्रवार के दिन प्रातःकाल स्नान करके शांत-एकांत कमरे में पूर्व उत्तर दिशा की ओर मुंह करके सुखासन में बैठ जायं। अपने सामने कोई वस्त्र विछा दें। उस वस्त्र पर जल से नहलाकर वशीकरण यन्त्र और स्फटिक माला रखें। यन्त्र और माला का धूप बत्ती से सामान्य पूजन करें तथा इच्छित पुरुष या स्त्री का चेहरा मस्तिष्क में लाते हुए स्फटिक माला से निम्न मंत्र का तीन  माला उच्चारण करें।

मंत्र -  ॐ ऐं ऐं  (अमुक) वश्यमानाय मम आज्ञा परिपालय  ऐं ऐं फट। 
                                    ( अमुक की जगह व्यक्ति का नाम लें )

          यूँ की मंत्र उच्चारण शुद्धता और एकाग्रता के साथ हो तो शत- प्रतिशत प्रभाव पड़ता ही है और इसका परिणाम भी शीघ्र देखने को मिलता है। मंत्र जाप के बाद माला गले में धारण कर लें और यन्त्र कहीं सुरक्षित तब तक रखें जब तक की कामना पूरी न हो जाये। अब प्रयत्न यह करे कि, उक्त पुरुष या स्त्री किसी भी बहाने आपके सामने पड़े। यदि दूर हो तो आप पूरी इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास से विचार बनाएं कि वह जहाँ भी हो, आपको फोन करे और जल्दी करे। बाद में यन्त्र को किसी बहती नदी में बहा दें। 
          
       यह आजमाया हुआ प्रयोग है। इस प्रयोग से पत्थर दिल भी मोम की तरह बनने लगते हैं। दरअसल ऐसे प्रयोग कभी भी व्यर्थ नहीं होते। यह निश्चित ही पूर्ण सफलता प्रदायक होता है। आप निश्चित होकर इसे करें। जैसाकि यह सम्मोहन वशीकरण प्रयोग है, किसी को भी अपने कंट्रोल में लेकर उससे अपनी  इच्छा मनवाना। अपने हर आदेश पर उसे संचालित किए रहना। परन्तु ऐसे प्रयोग कभी भी स्वार्थ या किसी की अहित के लिए न करें, यह शास्त्रिय हिदायत है। स्वच्छ मन से करें। इसका जीवन में अधिक से अधिक लाभ उठाएं। 
          
        इस प्रयोग से आपके अन्दर सकारात्मक उर्जा बनती है जो स्वतः ही आपके मार्ग की वाधाए ख़त्म करती जाती है। इसके प्रयोग से आपको दैवीय सौंदर्य की प्राप्ति होती है। एक दिन ऐसा आता है जब आप, जिसके भी बारे में सोंचते है वह व्यक्ति पुरुष हो या स्त्री आपसे मिलने, आपसे बात करने को लालायित रहते हैं। अधिक से अधिक समय तक आपके साथ गुजारने के लिए मन बनाए रहते हैं। 

(इस प्रयोग को करें। आप निश्चित सफल होंगे। किसी भी प्रकार की अन्य जानकारी लेनी हो तो हमारे नंबर पर फोन करके ले सकते हैं) 

अगले सप्ताह तक हम अपनी संस्थान से एक दुर्लभ और शक्तिशाली महा वशीकरण सिद्ध कवच   का निर्माण करने जा रहे हैं। इसे सिर्फ और सिर्फ गले में धारण कर लेने से ही उपरोक्त लाभ संभव हो सकेगा। अतः जो भाई बहन मंत्र उच्चारण आदि नहीं कर पाए, वह इस कवच को धारण करके लाभान्वित हो सकते है।) 
नोट- यह आपार हर्ष का विषय है कि, हमने अपने पूर्व सूचना के मुताबिक त्राटक ज्ञान के साथ सम्मोहन, वशीकरण, कुंडलिनी जागरण का 30 से 45 दिनों का विशेष कोर्स जारी कर दिया है। इस दुर्लभ त्राटक सम्मोहन कोर्स को अनेक प्रांतों के भाई बंधु और शुभचिंतक लगन पूर्वक कर रहे हैं। अतः मंगल कामना हैं इनकी सफलता के लिए तथा आपके लिए हार्दिक कामना है आपके आगमन के लिए। क्योंकि आप दुनिया से बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं परन्तु ऐसा अद्भुत और दुर्लभ ज्ञान कहीं और से प्राप्त करना बहुत ही कठिन है। नामुमकिन भी मान लीजिये। इस सम्बन्ध में किसी भी जानकारी के लिएआप बेहिचक हमें फोन कर सकते हैं। आपको हमारा भरपूर सहयोग प्राप्त होगा, भरोसा रखें।        
                                           
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Saturday 29 June 2013

अब आप भी सोना बना सकते है

         
         सोना बनाने का रहस्य 


          यह सौभाग्य की बात है कि  आज नेट सुविधा के कारण  आपको सोना बनाने की अद्भुत जानकारी बहुत ही सहज रूप से दे रहा हूँ। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति विभिन्न सामग्री  इकट्ठी करके अपने आत्मविश्वाश के योगदान से अपनी हाथों से सोने का निर्माण कर सकता है। क्योंकि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। असंभव उनके लिए है जो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते है, उनके लिए है जो ख्याली पुलाव बनाते रहते है। किन्तु आज मैं स्वर्ण निर्माण की चर्चा कर ही रहा हूँ।    
          
        आप थोड़ा हैरान, थोड़ा आश्चर्य चकित हो सकते हैं। मगर यह हैरान और परेशान होने का विषय बिलकुल ही नहीं है। आज भी कई ऐसे नाम गिनाए जा सकते हैं जो पूर्व काल में स्वर्ण निर्माण के सिद्धहस्त  रहे हैं। तंत्र  मंत्र, सिद्धियों से, पारे से, जड़ी वनस्पत्तियोँ से और रसायनों से सोने का निर्माण करके समाज की आर्थिक व्यवस्था सही कर चुके हैं। इनके नाम इस प्रकार है। प्रभुदेवा जी, व्यलाचार्य जी, इन्द्रधुम जी, रत्न्घोश जी आदि स्वर्ण विज्ञानी के तौर पर प्रसिद्ध रह चुके है। ये अपने आप में पारद सिद्धि पुरुष के रूप में जाने जाते हैं। 
          
          किन्तु एक भारतीय नाम है नागार्जुन की, जिनको समूचा विश्व स्वर्ण विज्ञानी के ही रूप में जानता है। नागार्जुन ने अपने समय में विभिन्न विधिओं से सोने का निर्माण कर पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया। आज भी भारत के सुदूर प्रान्तों में कुछ ज्ञानी जानकार, योगी साधक हो सकते हैं जो सोने का निर्माण करने में सक्षम है, यह तो खोज और शोध की बात है। ऐसे ही नामो में एक प्रसिद्ध नाम है श्री नारायण दत्त श्रीमाली जी, जो 13 जुलाई  सन 1998 ई० को इक्छा मृत्यु प्राप्तकर सिधाश्रम को प्रस्थान कर गए, परन्तु अपने पीछे अनेक दीपक छोड़ गए जो आज समाज कल्याण करने में सक्षम है और गुरु आदेश पर निरंतर कार्यशील हैं।  
          
          जैसाकि विभिन्न विधियों से सोने का निर्माण संभव है तथा पूर्व समय में कई अनुभवी रसाचार्यों ने सोने का निर्माण कर समाज को चकित किया, यह गर्व की ही बात है। 6 नवम्बर सन 1983 साप्ताहिक हिन्दुस्तान के अनुसार सन 1942 में पंजाब के कृष्णपाल शर्मा ने ऋषिकेश में मात्र  45 मिनट में पारा के दवारा दो सौ तोला सोना बनाकर रख दी जो उस समय 75 हजार रूपये में बिका तथा वह धनराशि दान में दे दिया गया। उस समय वहा पर महात्मा गाँधी, उनके सचिव श्री महादेव देसाई, और युगल किशोर बिड़ला आदि उपस्थित थे। इससे पहले 26 मई सन 1940 में भी श्री कृष्णपाल शर्मा ने दिल्ली स्थित बिड़ला हॉउस में पारे को शुद्ध सोने में बदलकर प्रत्यक्ष  दिखा दिया था। उस समय भी वहा विशिष्ट गणमान्य  लोग उपस्थित थे। 
          
           इस घटना का वर्णन बिड़ला मंदिर में लगे शिलालेख से भी मिलता है। इस सिलसिले में नागार्जुन का नाम विख्यात तो है ही, जिन्हें स्वर्ण निर्माण में महारत हासिल थी। उनके लिखे कई महत्वपूर्ण ग्रन्थ मौजूद है। उनका अध्ययन करके साधारण व्यक्ति भी भिन्न-भिन्न विधियों से सोना बनाने की प्रक्रिया समझ सकता है। नागार्जुन की संघर्ष कथा किसी आगामी पोस्ट में जरुर दूंगा। यहाँ मैं स्वर्ण निर्माण की सहज विधि के चर्चे पर आता हूँ। और इस समय मैं सिर्फ एक अत्यंत ही सरल विधि को बता रहा हूँ  यह विधि विश्वसनीय और प्रामाणिक है। इसे त्रिधातु विधि भी कहते हैं। यानी तीन  धातुओं को मिलाकर पहले एक कटोरानुमा बर्तन बनाया जाता है। फिर उसमें शुद्ध पारे सहित भिन्न-भिन्न सामग्री  के सहयोग से स्वर्ण बनाया जाता है। बर्तन की निर्माण विधि इस प्रकार है। 
          
            शुद्ध लोहा 500 ग्राम , शुद्ध पीतल 500 ग्राम और शुद्ध कांसा 500 ग्राम लेकर उसे अलग अलग पिघलाएं। पिघल जाने पर तीनो को मिश्रण करके एक कटोरे या कढाई  का रूप दे दें। ध्यान रहे उस बर्तन में कहीं छेद न हो। तीनो धातु शुद्ध और बराबर मात्रा  में हो। ऐसा बर्तन बनाने में दिक्कत हो तो बनाने वाले से ही बनवाले। बर्तन बन जाने के बाद उसे रख लें और बाजार से किसी विश्वसनीय पंसारी की दुकान से 200 ग्राम गंधक , 200 ग्राम नीला थोथा (तुतिया), 200 ग्राम नमक और 200 कुमकुम (रोली) और रस सिंदूर ख़रीदे। इसी प्रकार विश्वसनीय स्तर पर 100 ग्राम शुद्ध पारा और शहद भी खरीद कर लें। ध्यान रहे, गंधक को सभी लोग जानते हैं। नीला थोथा  जिसे तुतिया भी कहते हैं। यह नीले रंग का होता है, यह पुर्णतः जहर होता है। 
          
            सभी सामग्री इकट्ठी करके गंधक, नीला थोथा, नमक और रोली अलग-अलग कूट पीसकर आपस में मिलादें। अब इसे एक किलो स्वच्छ ताजे पानी में घोल दें। इसके बाद चूल्हा या स्टोव पर आग जलाएं और तीन  धातुओं वाले बने बर्तन में इस घोल को डाले। उसे धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी उबलने लगे तो 100 ग्राम पारे को रससिंदूर  में अच्छी तरह से घोटे। पारे का विष निकलकर साफ़ होता जाएगा। उस पारे की गोली बनाएं और उसके ऊपर शहद चिपोड दें। फिर उसे खौलते पानी में सामग्रियों के बीच  धीरे से रख दें।  उसे धीमी आंच पर पकने दें। जब दो तिहाई भाग पानी जल जाए तो पारे के गोले पर ध्यान रखे, वह गोला हल्का हल्का सुनहला होता जाएगा। जब पूरी तरह से सुनहला दिखने लगे तो बर्तन को नीचे  उतार लें। आपके दृढ आत्मविश्वास और परिश्रम से सोने का निर्माण हो चूका रहेगा। अतः उसका श्रद्धा पूर्वक नमन करें।

सावधानी -

1-     नीला थोथा जहर होता है, इसे छूने के बाद हर बार हाथ धो लें। 
2-     गंधक भी कुछ इसी तरह का पदार्थ है। छूने के बाद हाथ धो लें। 
3-     पारा अति चंचल द्रव्य है। इसे जमीं पर गिरने से बचाएं।
4-     सामग्री पकाते समय आँखों को किसी विशेष चश्मे से ढके रखें।

                                                                                                      आपकी सफलता के लिए मंगल कामना !

इस देश का सौभाग्य है कि,  सोना बनाने की यहाँ एक दो नहीं बल्कि संत ऋषियों  की कृपा से अनेक विधिंयां पूर्व संयोजित है। उन विधियों का रहस्य पूरे प्रामाणिकता के साथ आज भी संसार के सम्मुख है। विभिन्न ग्रंथों के अनुसार ऐसे दिव्य ज्ञान प्राप्त होने के बाद भी कोई गरीबी का रोना रोए तो इसे महा दुर्भाग्य ही माना जाएगा।
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